आपने दो लाईन में बहुत कुछ कह डाला,समझने और बिस्तार के लिए अथाह है ये।जितना मुझे लगा लिखने का प्रयास किया ।शायद आपको पसंद आये—–
चित्र भी मेरे शब्द भी मेरे,
दिल में गहरे जख्म भी मेरे,
दर्द जिगर का सुनकर भी,
तेरी आँसूं क्यों ना निकला,
जिसकी मरहम तेरी आँसूं,
दिल कैसा जो ना पिघला।
किश्ती का ऐ बड़ा मुशाफिर,
सागर तूने ना जाना,
आँखों में रहकर भी मेरे,
दिल को ना तू पहचाना,
मोम की पुतला जैसी मैं थी,
फूलों से भी कोमल थी,
जिस राहों पर कदम तुम्हारे,
उसी राह की मंजिल थी,
मंजिल की दहलीज पे आया,
क्यों तेरा रब ना दिखता,
जिसकी मरहम तेरी आँसूं,
दिल कैसा जो ना पिघला।
दास्तान से जिगर भरा है,
कण-कण में बस तू ही तू,
हाथों में तस्वीर तुम्हारी,
ख़्वाबों में बस तू ही तू,
रात अँधेरी,दिन उजियारे
आँख बंद या खुले हमारे,
रोम-रोम,भगवान् की मूरत,
में भी प्यारे तू दिखता,
जिसकी मरहम तेरी आँसूं,
दिल कैसा जो ना पिघला।
अगर पिघलता तेरा दिल,
सब शिकवे मेरे मिट जाते,
तेरी आँख की एक आँसूं की,
बूंद से सब कुछ मिट जाते,
दास्तान बरसों की पर,
एक बूंद की दरिया काफी थी,
मोम पिघलने की खातिर,
एक जलती तिल्ली काफी थी,
मगर तेरा दिल पत्थर जैसा,
छूकर मुझको ना पिघला,
जिसकी मरहम तेरी आँसूं,
दिल कैसा जो ना पिघला।
बहुत खूब—–परंतु क्या वो आंसू दास्ताँ डूबा पायी—?
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🙂 kahin koi aur tasveer mile to fir soche….. dasta ke bare mein 🙂
Vaise apka kya khayal hai?
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आपने दो लाईन में बहुत कुछ कह डाला,समझने और बिस्तार के लिए अथाह है ये।जितना मुझे लगा लिखने का प्रयास किया ।शायद आपको पसंद आये—–
चित्र भी मेरे शब्द भी मेरे,
दिल में गहरे जख्म भी मेरे,
दर्द जिगर का सुनकर भी,
तेरी आँसूं क्यों ना निकला,
जिसकी मरहम तेरी आँसूं,
दिल कैसा जो ना पिघला।
किश्ती का ऐ बड़ा मुशाफिर,
सागर तूने ना जाना,
आँखों में रहकर भी मेरे,
दिल को ना तू पहचाना,
मोम की पुतला जैसी मैं थी,
फूलों से भी कोमल थी,
जिस राहों पर कदम तुम्हारे,
उसी राह की मंजिल थी,
मंजिल की दहलीज पे आया,
क्यों तेरा रब ना दिखता,
जिसकी मरहम तेरी आँसूं,
दिल कैसा जो ना पिघला।
दास्तान से जिगर भरा है,
कण-कण में बस तू ही तू,
हाथों में तस्वीर तुम्हारी,
ख़्वाबों में बस तू ही तू,
रात अँधेरी,दिन उजियारे
आँख बंद या खुले हमारे,
रोम-रोम,भगवान् की मूरत,
में भी प्यारे तू दिखता,
जिसकी मरहम तेरी आँसूं,
दिल कैसा जो ना पिघला।
अगर पिघलता तेरा दिल,
सब शिकवे मेरे मिट जाते,
तेरी आँख की एक आँसूं की,
बूंद से सब कुछ मिट जाते,
दास्तान बरसों की पर,
एक बूंद की दरिया काफी थी,
मोम पिघलने की खातिर,
एक जलती तिल्ली काफी थी,
मगर तेरा दिल पत्थर जैसा,
छूकर मुझको ना पिघला,
जिसकी मरहम तेरी आँसूं,
दिल कैसा जो ना पिघला।
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वाह मधुसूदन जी आप तो खरे प्रतिभावान हैं, मैं तो यूं ही दो पंक्तियों की कोशिश में लगी रहती हूँ।
सदर नमन आप को।
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AAPKO BHI NAMAN……. WAISE AAPKE DONO LAAYEEN SE MILAANE KAA PRAYAAS KIYAA WO BHI AAPKE KAHNE PAR ACHHA LAGAA ….BAHUT BAHUT DHANYAWAAD AAPKAA.
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🙂
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https://vinaypurbia.wordpress.com/2017/07/21/mohabbat-banaam-jaat-paat-dhan-karam/
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हम सात भाई बहन, पर एक गायब है ।
एक बार जब में ट्रेन में सफ़र कर रही थी तो कुछ बातें मन में आयी, काफी प्यारी यादों को ताजा कर देने वाली बातें । हालांकि मैंने उन बातों को लिखा भी
https://justympass.wordpress.com/2017/07/22/%e0%a4%ac%e0%a4%9a%e0%a4%aa%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%82/
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Hello Kavya, apki post kafi interesting hain. Best wishes!
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Thenkuhhhh so much 😊😊
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Kya khoob likha hai👌
Check out my attempt at shayari
https://thecagedbirdsingsweb.wordpress.com/2017/09/17/shayari/
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Sure. ASAP.
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Nice article …keep up the work 😁
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क्या खूब लिखा है आपने
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खयालों के समंदर में गोते लगाना
ढूंढकर फिर यादों की मोती निकालना
और उन लम्हों को ज़हन में दोहराना ….
कभी-कभी अच्छा लगता है !
– अनूप राय
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